Saturday, 21 April 2018

हमारी शिक्षण व्यस्था!! शिक्षा या विद्या !

हमारी  शिक्षण व्यस्था 

शिक्षा या विद्या !


 शिक्षित होने और विद्या-वान होने में अंतर है।  आजकल हर माँ - पिता अपने बच्चों को शिक्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। शिक्षित होने के लिए महंगे से महंगे स्कूल में बच्चें भेजे जाते हैं। परंतु सच्चाई क्या है बच्चे केवल अक्षरी ज्ञान प्राप्त कर रहे है और कुछ नहीं।  केवल अक्षरी ज्ञान प्राप्त करने से बच्चों की  बौद्धिक क्षमता नहीं  बढाती।  जब तक शिक्षा का मकसद केवल  नौकरी पाना रहगा, तब तक समाज में केवल नौकर ही पैदा होंगे।हम पहले विद्यालयों में पढ़ा करते थे और अब केवल स्कूल ही बच गए है।  आज अंग्रेजी,  रोटी की भाष बन गई है इसीलिए हर माँ पिता चाहता है कीउनका बच्चा  केवल अंग्रेजी स्कूल में जाये। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की बच्चे की गुणवत्ता क्या रह जाएगी। आज भारत में अच्छी  से अच्छी नौकरी प्राप्त करने की होड़ लगी है, हर कोई नौकर बनना चाहता है क्योकि बच्चो ज्ञान ही ऐसा दिया जा रहा है।

 भारत में पहले गुरुकुल पद्धति हुआ करती थी।  'गुरुकुल' का शाब्दिक अर्थ है 'गुरु का परिवार' अथवा 'गुरु का वंश ' इन शब्दों से भी यह ज्ञात होता है. की एक अच्छे गुरु परिवार से एक विद्वान गुरु ही निकलते हैं वो चाहे उच्च कोटि का विद्वान् हो या बेहतरीन योद्धा या निपुण व्यापारी इत्यादि।  पहले अशिक्षित लोग ही नौकर हुआ करते थे। हमारी दोष पूर्ण शिक्षण पद्धति का ये परिणाम है, की  आजकल पढ़ लिख कर भी लोग नौकर  बनान चाहते है।  

मित्रो, अब समय आ गया है हमें हमारी  शिक्षण पद्धति पर विचार करने का उसमे उचित बदलाव करने का। 
वर्ष २०११ में  फालतू नाम की एक पिच्चर आई थी, जिसमें ये दिखाया गया था की किस तरह स्कूल, कॉलेज में फेल हुए बच्चे असल जिंदगी के पाठशाला में सफल हैं।  बस यही हमें भी अपने बच्चो को केवल शिक्षण नहीं  उनके योग्यता अनुसार उन्हें उनके क्षेत्र में प्रशिक्षण देने की शुरुआत करनी चाहिए। विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अक्षरीय ज्ञान के साथ साथ क्रियात्मक ज्ञान देने की शुरुआत करनी चाहिए।क्रियात्मक ज्ञान से बच्चो की सोच में बदलाव आयेगा समाज को बुद्धजीवी लोग मिलेंगे। रूचि अनुसार क्रियात्मक ज्ञान बच्चो का  उच्च कोटि के व्यवसाइक बनाने में मदद करेगा। आजकल देखने को मिलता है की डॉक्टर या इंजिनियर बनाने के अलावा बच्चे वीडियो जॉकी, शेफ - होटल प्रबंधन, भाषा अनुवादक, खिलाडी इत्यादि जैसे क्षेत्रों में सफलता पूर्वक काम कर रहे है। बच्चों को उनकी रूचि अनुसार विद्यालयों में प्रशिक्षण दिया जायेगा तो उनका शिक्षण पूर्ण होते होते वे एक निपुण पेशेवर, व्यवसायी, लेखक और कलाकार आदि बन के अपना एवं समाज के उत्थान के लिए कार्य करेंगे।

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