घुमक्क्ड़ी
बंधी नियमित जिदंगी से होती है सबको घुटन
इससे मन बहलाव के हित जरूरी है पर्यटन
-प्रो. सी.बी. श्रीवास्तवइससे मन बहलाव के हित जरूरी है पर्यटन
छुट्टी मानाने की कोई उम्र नहीं होती। रोजमर्रा के काम से मन विरक्त होने पर फिर से रिचार्ज होने का सबसे बेहतरीन उपाय है पर्यटन, घूमना , कहीं दूर निकल जाना। वर्तमान दुनिया के चकाचौंध और व्यस्त परिवेश में एक समय ऐसा आता है जब किसी काम में मन नहीं लगता, लाइफ में बोरियत हावी हो जाती है। तब हमें कुछ नया करने का मन करता है। आज हम और आप अपने में इतने व्यस्त हो गए हैं की समय कैसे निकलता जा रहा है पता ही नहीं चलता। कुछ तो हमें हमारे काम ने जकड़ रखा और बचे हुए समय को हमारे मोबाइल और टेलीविज़न ने चुरा लिया है यु कहे की अब हमें हमारे और अपने परिवार लिए वक्त नहीं। बच्चे भी साल भर स्कूल, टूशन और तरह तरह की कोचिंग से और बचे हुए समय में मोबाइल और टेलीविज़न से इतने व्यस्त हो जाते है की उन्हें कभी शारीरिक खेलो का समय नहीं मिलता। महिलाओ का तो क्या पूछना गृहिणी हो या कामकाजी, सुबह सबसे पहले उठ कर सबके टिफ़िन से लेकर रात के बर्तन माँजने तक उनकी व्यस्त का क्या कहना, और हाँ कुछ बचे हुए समय में सास - बहु के सीरियल और मोबाइल में ये भी बहुत व्यस्त रहती है । समय की इसी आपाधापी से हम अपने काम करने की तीक्ष्णता को खो देते हैं।
हमारे आस-पास मनोरंजन के कई साधन उपलब्ध हैं मोबाइल, टेलीविज़न से सिनेमा इत्यादि तक ये सभी तात्कालिक उपाय है। परन्तु पर्यटन अपने आपको फिर से तोरोताजा और अपनों को एक सूत्र में बांधने का दीर्घकालिक और बहुत ही कारगर तरिका है। आप को याद होगा कई बार हम कुछ हिसाब करते वक्त एक ही गलती बार बार दोहराते है और हमारा हिसाब नहीं मितला पर कुछ देर वहाँ से ध्यान कही और हटते ही याद आ जाता है की गलती कहाँ हो रही थी। इसी तरह बार बार एक ही दिनचर्या से हमारी कार्यक्षमता कम होती जाती है और सालाना या छः माह में एक बार कुछ दिनों की यात्रा हमे हर्षित करते हुए हमारी कार्य दक्षता बढाती है। जब आप अपने परिवार, रिश्तेदार या दोस्तों के संग कही समय व्यतीत करते हैं तो आप केवल मनोरजीत ना हो कर आप अपनों को बेहतर ढंग से समझने का भी अवसर प्राप्त करते है।
पर्यटन करने को हमारा शास्त्र और विज्ञान दोनों कहते है कई बार तो डॉक्टर भी अच्छी सेहत के लिए सलाह देते है की किसी हिल स्टेशन पर घूम आओ। भ्रमण या यात्रा एक बहुत ही जरुरी एवं सरल उपाय है अपने आप को ऊर्जावान और सकारात्मक बनाने का। एक समय था जब मैं खुद अपने काम में व्यस्त होता तो सोचता की ये पर्यावरण, रमणीय पर्यटन क्या होता है बस पेड़, पहाड़, पानी का भ्रमण इससे क्या फर्क पड़ता है, पर आज जब मैंने खुद मनोरम स्थलों की यात्रा करनी शुरू की तो समझ में आया की जीवन से भरे ये मनोरम दृश्य मेरे ह्रदय और जीवन पर अमिट छाप छोड़ रहे है। हमारे ट्रेवेल गुरु श्री पी. एस. ज्ञानजी का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रूप से कथन है की, "पेड़ों और पहाड़ो के सानिध्य में आने से हम अपने जीवन से समाप्त हो चुके प्राणवायु यानी ऑक्सीज़न को पुनः प्राप्त कर अपनी आयु में कुछ और वर्ष जोड़ लेते है।" हकीकत है शहरों में बढ़ रहे प्रदूषण और रोजमर्रा के भीड़ भरे जीवन से दूर कही हिल स्टेशन पर जाने से हमारे अंदर के ऑक्सीज़न का स्तर बढ़ जाता है जो हम नए जीवन का अनुभव करता है।
" क्या मौसम है
ऐ दीवाने दिल
चल कही दूर निकल जाये....... !"
आप के हर सफर का हम सफर




